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Wednesday 28 May 2014

अबकी बार! आर या पार!


मेरे भक्त मित्रों को बधाई! खुशी है के उनकी मनोकामना पूर्ण हुई. इस बात की अधिक खुशी है के पिछली बार भा ज पा की सरकार बनने पर अपने जनता को किये वादे पूरे ना कर पाने का उन्होने एक ही कारण् बताया था, वो था अन्य दलों से समर्थित सरकार की राजनीतिक विवशता

इस बार जनता का मत निर्णायक है, अतः उम्मीद है के भा ज पा का शासन् भी निर्णायक होगा. प्रतीत भी यही होता है के कांग्रेस के दस वर्षीय ढुलमुल कुशासन और तुलना मे मोदी के 15 वर्षीय गुजरात शासन के परिणाम स्वरूप ही यह फल प्राप्त हुआ है. तो अबकी बार आर या पार!

यदि भा ज पा इस ऐतिहासिक अवसर को व्यर्थ ना कर वो सभी स्वप्न साकार करेगी जो वो अपने जन्म से अपने समर्थकों को दिखा रही है तो ही इस निर्णायक मत का सही मान होगा. फिर 370 और कश्मीर का मुद्दा हो या कौमन सिविल कोड हो, या बाबरी मस्जिद विवाद हो, अब इन मुद्दो का हल होना चाहिये. संसद मे समाज मे इन पर चर्चा हो, और सरकार इन मुद्दों को इनके अंजाम पर पहुँचाय.

इसके अतिरिक्त मोदी जी से आशा रहेगी के वो अपने कद को अपनी ज़िम्मेदारी के हिसाब से बढ़ाते हुए, राजधर्म संगत न्याय और विकास से जुड़ी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे

मेरे मित्र जिन्हे यह प्रतीत हो रहा हो के में भी उगते सूरज को सलाम कर रहा हूँ उनसे कहना चाहूंगा के मेरी आस्था आप पार्टी की सोच के प्रति अडिग है, स्वराज और भ्रष्टाचार भले ही आज जनमानस पर बड़े मुद्दे नही हों पर व्यवस्था परिवर्तन समाज की आवश्यकता है और यह संदेश जनता को न समझा पाना ही आप पार्टी की सबसे बड़ी हार है

इस हार को स्वीकार कर आप को एक आदर्श राजनीतिक संगठन के ढाँचे को बनाने की तय्यारी करनी चाहिये. यह इसलिये भी ज़ुरूरी है के कांग्रेस पार्टी अपने पीछे एक शुन्य छोड़ के जा रही है, और आप से उपयुक्त उसका कोई विकल्प नही है

समर शेष है!

सहनशक्ति या समर्पण

 img http://lynnerickardsauthor.files.wordpress.com/


जिस साथी के दुःख-अपमान को जीवन भर अपने पर लेती हो
अर्ध वय में उसी पुरुष के धिक्कार कैसे सह लेती हो

अल्हड़पन में मेरी कटु वाणी के तिरस्कार सुन चुप रह लेती हो
माँ तुम मेरी नासमझी को सहज ही कैसे सह लेती हो

जब झगड़ते -जूझते थे हुम और डांट तुम्हे ही पड़ती थी
तब नहीं विचार किया ये बहना कैसे चुप रह सह लेती हो

अपराध बोध को क्रोध से ढांक कर जब तुम पे बरसूँ मै
अपने रोष को प्रिये तुम मीठी मुस्कान से छुपा लेती हो

तुम्हारे स्वप्न, तुम्हारी आशाएं, तुम्हारी आकाँछाएं सखी
मेरी व्यर्थ कामनाओं पे सहज निछावर कर देती हो 
img: http://subscribe.ru/group/kak-prekrasna-zemlya-i-na-nej-chelovek/5245617/

नीच पशु सम पुरुषों के कथित कलापों का मिथ्या जब
दोष मढ़ता समाज तुम्ही पर, सुन कर तुम चुप रह लेती हो

असीमित है सहने कि क्षमता तुम्हारी, देख चूका है ये विश्व सभी
निष्पाप निष्कलंक निरपराध फिर सब कलंक क्यूँ अपने सर लेती हो

अब समय बस यही शेष है, दिखला दो इन्हें वो प्रताप वीरांगना
अपराध है
अब चुप रहना-सहना, अपराध करोगी जो अब भी सहती हो